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यो हि धर्मे परित्यज्य......

यो हि धर्मे परित्यज्य भवत्यर्थपरो नरः।
सोsस्माच्च हीयते लोकात्  क्षुद्रभावं च गच्छति ।।
-महाभारत, द्रोणपर्व

जो मनुष्य धर्मका परित्याग करके अर्थपरायन हो जाता है वह इस लोकसे (लौकिक स्वार्थसे) भ्रष्ट हो जाता है और नीच गति को प्राप्त हो जाता है।

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