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आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव......

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।
आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी कृतस्यापकृतस्य च।।
महाभारत,स्त्री पर्व

मनुष्य आप ही अपना बंधु (हित चाहने वाला) है और आप ही अपना शत्रु (अहित करनेवाला) है, और अपने ही शुभ अशुभ अर्थात अच्छे बुरे कर्मो का साक्षी है।

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