अनिष्कषाये काषायमीहार्थमिति विद्धि तम्।
धर्मध्वजानां मुण्डानां वृत्यर्थमिति मे मितिः।।
-महाभारत
यदि हृदयका कषाय (राग अदि दोष)दूर न हुआ हो तो कषाय (गेरुआ)वस्त्र धारण करना स्वार्थ साधनकी चेष्टाके लिए ही समझना चाहिये । मेरा तो ऐसा विश्वास है की धर्मका ढोंग रखनेवाले मथमुंडोके लिए यह जीविका चलने का एक साधनमात्र है ।
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