॥ हस्तामलक स्तोत्रं॥
कस्त्वं शिशो कस्य कुतोऽसि गन्ता,
किं नाम ते त्वं कुत आगतोऽसि।
ऐतंमयोक्तम वद चार्भकत्वं,
मत्प्रीतये प्रीतिविवर्धनोऽसि ॥१॥
श्री शंकराचार्य हस्तामलक से प्रश्न करते हैं - मेरी प्रीति को बढ़ाने वाले तुम कौन हो? किसके पुत्र हो? कहाँ जा रहे हो ? तुम्हारा नाम क्या है? कहाँ से आए हो? हे बालक, मेरी प्रसन्नता के लिए, मुझे यह सब बताओ॥१॥
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