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॥ हस्तामलक स्तोत्रं॥


हस्तामलक स्तोत्रं॥

यथाऽनेकचक्षुः प्रकाशो रविर्न-
क्रमेण प्रकाशीकरोति प्रकाश्यम्।
अनेकाधियो यस्तथैकप्रबोधः,
स नित्योपलब्धिस्वरुपोऽहमात्मा ॥९॥

जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश अनेक आँखों को एक साथ प्रकाशित करता है, उसी प्रकार जो अनेक बुद्धियों को एक साथ प्रकाशित करता है, मैं सनातन, निरंतर विद्यमान रहने वाला, वह ज्ञानस्वरुप आत्मा हूँ॥९॥

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