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निमित्तं मनश्चक्षुरादिप्रवृत्तौ,
निरस्ताखिलोपाधिराकाशकल्पः।
रविर्लोक चेष्टानिमित्तं यथा यः,
स नित्योपलब्धिस्वरुपोऽहमात्मा ॥३॥

जिस प्रकार सूर्य इस संसार के सारे क्रिया - कलापों का कारण है, उसी प्रकार मन और चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रियों की चेष्टाओं का आधार परन्तु समस्त उपाधियों से आकाश के समान रहित, मैं सनातन, निरंतर विद्यमान रहने वाला, वह ज्ञानस्वरुप आत्मा हूँ॥३॥

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