॥ हस्तामलक स्तोत्रं॥
समस्तेषु वस्तुष्वनुस्यूतमेकं,
समस्तानि वस्तूनि यं न स्पृशन्ति।
वियद्वत्सदा शुद्धमच्छस्वरूपं,
स नित्योप्लब्धिस्वरूपोऽहमात्मा ॥१३॥
जो समस्त वस्तुओं में आकाश के समान विद्यमान है, परन्तु जिसे समस्त वस्तुऎं स्पर्श नहीं कर सकती हैं, जो शुद्ध, सत्य स्वरुप है, मैं सनातन, निरंतर विद्यमान रहने वाला, वह ज्ञानस्वरुप आत्मा हूँ ॥१३॥
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