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|| हस्तामलक स्तोत्रं ||

|| हस्तामलक स्तोत्रं ||

मनश्चक्षुरादेविर्युक्तः स्वयं यो,
मनश्चक्षुरादेर्मनश्चक्षुरादिः।
मनश्चक्षुरादेरगम्यस्वरूपः,
स नित्योपलब्धिस्वरुपोऽहमात्मा ॥७॥

मन, चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रियों से रहित, मन, चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रियों का भी मन और चक्षु, मन, चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रियों के लिए अगम्य, मैं सनातन, निरंतर विद्यमान रहने वाला, वह ज्ञानस्वरुप आत्मा हूँ॥७॥

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