आत्मछिद्रं न जानाति परच्छिद्राणि पश्यति |
स्वच्छिद्रं यदि जानाति परच्छिद्रं न पश्यति ||
लोग खुद की कमियों को तो नहीं देखते हैं परन्तु दूसरों की कमियां उन्हें अधिक दिखाई देती हैं | यदि वे अपनी कमियों को जानते ( या उन्हें जानने का प्रयत्न करते ) तो उन्हें दूसरों की कमियों को गिनने की आवश्यकता ही न होती |
1 टिप्पणियाँ
... यथार्थमनुभवरत्नम्
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