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भैशज्यमेदत्‌ दुखस्य..... #महाभारत
अरक्षिता दुर्विनीतो मानी स्तब्धोsभ्यसूयकः #महाभारत
विषनिषेक इव दुराचारः | #नीतिवाक्यमृत
न पश्यती....... | सुभाषितरत्नाकर
इह लोकेSपि  धनिनां परोSपि ....... | -सुभाषित रत्नाकर
शुभेन कर्मणा..... 
| महाभारत स्त्री पर्व
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव......
यो हि धर्मे परित्यज्य......
काव्य शास्त्र विनोदेन......
पुस्तकं वनिता वित्तं.....
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